कविता किरण री दो कवितावाँ


१.
कूण कैवे है
रीता समदर में
जाय‘र तिरां
भरया घडा में ई
पाणी भरां
कीं करणो
कीं नीं करणो
ओ ई ठा कोनी
स्म्रितियां रे
जंगळ में
रोता फिरां
अर
अपणी ई
छाया सूं डरां।
कूण कैवे
समै रे साथै
सगळा घाव
भर जावे।
बसंत रै
आतां ई
सूखा पाना
सैंग झर जावै।
कूण कैवे है ?
कूण ?
***
२.
छोरयाँ
छोरयाँ
कांई ठा क्यूं
डार जावै है
काळी रातां में
अपणी ई छाया सूं
अर काछबा ज्यूं
समेट लै
सिकोड लै अपणे अंगा नै
अपणी‘ज
खाळ रै मांय।
पकड-पकड छोडे
एक-एक स्वास
ऊलाळा में ई
थर-थर धूजै
पी जावै
मूंडे री भाप।
छोरयाँ
डरप जावै
सूना गेलां में
पगरख्यां री
चर-चर स्यूं।
जम जावै
बरफ ज्याण
अपणै ई‘ज डीळ रै
सांचा में।
हो जावै भाटा ज्यूं
मिनखां री
डील नै आर-पार भेदती
निजरां रै पडतां ईं
छोरयाँ
कांई ठा क्यूं
नमती जावै दन-दन
लदियोडी
डाळी ज्यूं
गड जावै
धरती रै मांय
नीं कीधे
अपराध रै बोध स्यूं।
छोरयाँ
अबै घणी थाकगी है
खुद अपणी ई
बधती उमर रै
बोझ स्यूं
***
-कविता किरण
फालना, पाली।


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