वासु आचार्य री कविता- नीमडौ अर म्हैं



नीमडौ अर म्हैं

बी री बापडै री
लाचारी तो
कोई नी जाणै
सुणावै- आवै-जावै जकां
खारा बोल बीनै’ ई सुणावै
बो और कोई नीं
एक नीमडै रो पेड
जकौ आपरी छाया-
चैत री खुसबू-
सौ कीं लुटावै
पण बी’रै आसै-पासै
नीं ठा कीकर
ऊगगी तीखै कांटा री
बौट्यां-
फैळगी सूळां
आवे जकौ
जावै नीमडै रे कनै
लैवण नै आणन्द
अर चीं-चीं करतौ
पछौ न्हाठै
खुभता कांटा- रिसतौ खून पूंछै
दै जावै-
नीमडै ने
अकैकारा ’लोरा‘
म्हैं देखूं- घणी बार
ओ सौ दीठाव
दैऊ म्हारै- मन ने धीजौ
बो- म्हारै कांनी ताकै
म्हैं बी रै कांनी।
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-वासु आचार्य
(साभार जागती जोत)