वासु आचार्य री कविता- नीमडौ अर म्हैं



नीमडौ अर म्हैं

बी री बापडै री
लाचारी तो
कोई नी जाणै
सुणावै- आवै-जावै जकां
खारा बोल बीनै’ ई सुणावै
बो और कोई नीं
एक नीमडै रो पेड
जकौ आपरी छाया-
चैत री खुसबू-
सौ कीं लुटावै
पण बी’रै आसै-पासै
नीं ठा कीकर
ऊगगी तीखै कांटा री
बौट्यां-
फैळगी सूळां
आवे जकौ
जावै नीमडै रे कनै
लैवण नै आणन्द
अर चीं-चीं करतौ
पछौ न्हाठै
खुभता कांटा- रिसतौ खून पूंछै
दै जावै-
नीमडै ने
अकैकारा ’लोरा‘
म्हैं देखूं- घणी बार
ओ सौ दीठाव
दैऊ म्हारै- मन ने धीजौ
बो- म्हारै कांनी ताकै
म्हैं बी रै कांनी।
***
-वासु आचार्य
(साभार जागती जोत)

Comments

2 Responses to “वासु आचार्य री कविता- नीमडौ अर म्हैं”

April 28, 2011 at 10:36 PM

नमस्कार !
आदरणीय ओम जी !
प्रिय नरेन्द्र जी !
आदर जोग वासु जी रे कवितावा आंखिया सामी एक चित राम ले देवे है , कवितावा हिवडे री उड़ाई सू मान्द्येदी है जिको इण ओलिया न एबांच जी सोरो होय जावे !समप्दक मंडल ने मोकली बधाई कि इण भान्त रा लुन्ठा कवितायों ने बे पढ़निया रे सामी राखे अर मायड़ भासा रो मान और ऊँचो करे , फेरु बधाई
सादर ! मायड़

April 28, 2011 at 10:39 PM

नमस्कार !
आदरणीय ओम जी !
प्रिय नरेन्द्र जी !
आदर जोग वासु जी रे कवितावा आंखिया सामी एक चित राम ले देवे है , कवितावा हिवडे री उड़ाई सू मान्द्येदी है जिको इण ओलिया न एबांच जी सोरो होय जावे !समप्दक मंडल ने मोकली बधाई कि इण भान्त रा लुन्ठा कवितायों ने बे पढ़निया रे सामी राखे अर मायड़ भासा रो मान और ऊँचो करे , फेरु बधाई
सादर ! मायड़