रामस्वरूप किसान री कविता- काळजै रौ सांच


काळजै रौ सांच

ऊंट मरग्यौ
ठान पर बैठ्या
टाबर रोवै
ऊंट ने

आंगणै बैठ्या
मायत रोवै
रकम नै

अेक ई चोट
दो ठोड लागी
अेक साथै

टाबरां रै काळजै
अर मायतां रै माथै।
आ बैठ बात करां

आ बैठ
बात करां
आंगणै पसरयौ
मून भार बावळीै।
बंतळ री
य़ाजम बिछावां

जुगां सूं
टाळयोडा सवाल नूंतां
जवाबा रौ पावर कूंता

सेवट होणौ पडसी
सांच रै अरू-बरू
किता क दिन
टाळस्यां उरां परां
आ बैठ
बात करां।
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(साभार- आपणो राजस्थान)