मुट्ठी भर उजियाळो
निजरां सूं कीं कीं कैवणौ
मूंडै सूं कीं
कैवण सूं बत्तो हुवै
असरदार
म्हैं सीखग्यौ.
म्हैं जाणग्यौ
के रात रै अन्धारै में
न्हायोङी धरती
जे चन्दरमा सूं मांग लेवै
मुट्ठी भर उजियाळौ
तो चन्दरमा
मूंडो फ़ेर’र खिसक जावै
अर घणी बार
बो ई चन्दरमा
दिन थकै आय धमकै
धरती री छाती पर
अणमांवतौ
उजियाळौ ले’र
***
तू आभौ
तू एक अकास हौ
मतळब आभौ
घणौ लंबौ चवडौ
अणूतौ फ़ैलाव लियोङौ
जठीनै देखां
बठीनै तू, फ़गत तू
म्हैं थनै देख-देख’र
करतौ अचूम्भौ
आज भी हुवै
घणौ इचरज
के इतरी बडी चीज नै
बणावण आळौ
आप कितरौ बडौ हुसी
कुण जाणै?