सांवर दइया री कवितावां
अर अचाणचक
आभै में उडतै
पंछी नै देख
मुळकूं
हरखूं
उच्छब मनावूं
……अर अचाणचक
आकळ-बाकळ हो जावूं
अटकै म्हारी आंख
आड़ लेय ऊभो
पारधी निजर आवै
म्हारी सांस
ऊपर री ऊपर
हेठै री हेठै रह जावै !
***
इक्कीसवीं सदी
साव उघाड़ी
साटणिया साथळां
काकड़ियै-सा फाटता बूकीया
अर ए श्रीफळ
आंख्यां रातीचोळ
जाणै छक’र पी हुवै हथकढ़ी
जठै जावूं
म्हारै गळै पड़ै
आ उफणती नदी
नांव पूछूं तो एक ई उथळो-
म्हैं इक्कीसवीं सदी !
म्हैं इक्कीसवीं सदी !!
***
मन री नदी
आंधी
बोळी
गूंगी
छतां लखणा री लाडी
आ मिजळी सदी
जंगळ सूं जुड़िया
लोभ रा लाडू
काटां-बाटां-खावां
थे-म्है-स्सै
कारखानै री सूगली नाळियां
गिंधावतो पाणी
चिमन्यां सूं निकळतो धूंवो
अमूजतो आभो
धांसतो-खून थूकती हवा
मैला गाभा
मैलो तन
मैली आंख
मैली मन री नदी !
***
ऊंधो हुयोडो रूंख देख’र
म्हारी जड़ां
जमीन में कित्ती ऊंडी है
आ चींतणियो रूंख
आंधी रै थपेड़ां सूं
ऊंधो हुयग्यो जमीन माथै
कित्ताक दिन रैवैला
तण्यो म्हारो डील-रूंख ?
नितूकी बाजै
अठै अभाव-आंधी
होळै-होळै कुतरै
जड़ां नै जीव
अबै
औ गुमान बिरथा
म्हारी जड़ां
जमीन में कित्ती ऊंडी है !
***
धोरां रो धणियाप
म्हारै च्यारूंमेर
धोरा ईं धोरा
धायोड़ां नै लखावै
सोनै वरणा
भूखां नै
पीळीयै में पड़ियै टाबर-सा
आं धोरां रो धणियाप
म्हारी सांसां माथै
आ तो
आंरी मरजी
रोसै
का पोखै म्हनै !
***
हत्भाग
गूंगो गुड़ रा गीत गावै
बोळियो सरावै
सजी सभा में
पांगळो पग पम्पोळ बोल्यो-
म्हैं नाचसूं !
आंधो आगै आयो
बाड़ो बोलतो-
थांरो कांई ठेको लियोड़ो है
म्हनै ई देख्ण द्यो !
कळावंत !
काठी झाल थारी कलम नै
***
जायसी री पीड
म्हैं काळो
म्हैं काणो
म्हैं कोझो
थांनै हंसता देखूं तो लखावै
हाल मरियो कोनी
शेरशाह
म्हैं माटी हो कदै ई
इण गय सूं पैली
जाणता हुवोला थे ई
रचना पड़रूप हुवै सिरजणियै रो
म्हारी कणाई
म्हारी कोजाई
उणियारो है बींरो ई !
***
छळ
लोग कैवै :
तूं जठै दांत देवै
बठै चिणा कोनी देवै
अर जठै चिणा देवै
बठै दांत
पण म्हनै तो तैं
दांत अर चिणा दोनूं ई दिया
अबै
आ बात न्यारी है
कै आं दांतां सूं
ऐ चिणा चाबीजै कोनी !
***
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