पै’लो बिरवो- नरेन्‍द्र व्‍यास

आदरजोग ओम जी रै आसीस अ'र प्रोत्साहण स्यूं मायड़ भासा में म्हारो पैलो परयास.. 'पै'लो बिरवो' रोपण सारू हुयो है सा. कित्तो सफल है, आ तो आपरै नंबरां माथै इण रो अस्तित्व टिक्योड़ो है सा.. आगे रो रास्तो आप ई'ज दिखाया, म्हारी आई अरदास है आप सबाँ गुणीजणा स्यूं. ताकि मायड़ भासा रै सारू म्हारो भी कर्तव् पूरो करण में एक माड़ो सो परयास सफल हो सकै...

पै’लो बिरवो


कित्तो बेकळ होयो होसी
जद बरस्यो होसी
पै’लो बादळ
हब्बीड़ उपड़्यो होसी
आभै में
अर टळकी होसी
अखूट धार
मोकळा जळव्हाळा लियां
जूण खातर !

कित्ती बेकळ रे’ई होसी
मुरधरा
जद कठै ई जाय'र
उपडी़ होसी एक नदी सूं
पै’ली धार
अनै सिरज्यो होसी
पै’लो बिरवो
थार में !
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Comments

9 Responses to “पै’लो बिरवो- नरेन्‍द्र व्‍यास”

July 7, 2011 at 8:31 AM

saravann jog kavita...badhayee ar shubhkamnava....:)

July 7, 2011 at 9:04 AM

भोत ईज सांतरी कविता है नरेन्द्र भाई!इणीज भांत और लिखो अर लिखता ईज रैयवो..आनंद आयग्यो..

July 7, 2011 at 9:22 AM

वाह भाई नरेन्द्र,वाह !
भोत जोरदार कविता मांडी !
ऐक-ऐक ओळी मन्तर भांत !
और लिखो
अर
लिखता ई जाओ !
आप री भाषा में दम है !
बुणघट भी सांतरो है !
आप म्हन्नै तो फ़ालतू ई सराओ-लडाओ ! आपरी कविता आपरे खिमता री साख भर रै’ई है !
जय हो आपरी !

July 7, 2011 at 3:54 PM

राजस्थानी में लिखणो चालू करण खातर बधाई।

July 8, 2011 at 3:18 AM

बधाई हो सा... भोत ही चोखो काम करयो सा.....

July 9, 2011 at 5:50 AM

bot bot badhai sa .
kavita jabar hai sa. guruji ro maan badhaawola .likhta jaawo ar padhata jaawo .

July 10, 2011 at 5:06 AM

badhai sa...
aa kavita kini deeth su 'pelo birvo' nee lage..
aa to koi manjyode kavi ri kavita deese vyas ji..
bhot sovni...

August 12, 2011 at 12:25 AM

भाई नरेन्द्र जी
घणी खम्मा !

पैलै बिरवै रा ऐ रंग ! वाह सा

चोखो लिखियो सा … !
लखदाद हैं आपनैं अर आपरी लेखणी नैं …


मोकळी बधाई !
घणी घणी शुभकामनावां !

- राजेन्द्र स्वर्णकार